ब्रह्मचर्य की कहानी

  

ब्रह्मचर्य की कहानी

ब्रह्मचर्य की कहानी एक बार महर्षि वेदव्यास अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे रहे थे उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि कामुकता इंसान के विनाश का सबसे बड़ा कारण है। इसलिए हमें ब्रह्मचर्य जीवन में कामवासना से बचना चाहिए। गुरुदेव की बात बीच में ही काटते हुए उनके तरुण नामक एक शिष्य ने कहा गुरुदेव मैं तो पूर्ण ब्रह्मचारी हूं काम मुझे जरा सा भी पीड़ित नहीं कर सकता तो गुरुदेव ने कहा वत्स यदि तुम्हारा मन जरा सा भी कमजोर हुआ तो कामवासना तुम्हारे ऊपर हावी हो सकता है परंतु शिष्य मानने को तैयार नहीं था वह बार-बार यही कहता कि गुरुदेव मैं तो पूर्ण ब्रह्मचारी हूं।

कामवासना की कितनी भी तेज आधी क्यों ना हो मगर वह मेरे ब्रह्मचर्य को हिला नहीं सकती। गुरुदेव ने उसकी बातों से भी सहमति व्यक्त की और मन ही मन उसकी परीक्षा लेने के बारे में सोचने लगे कुछ समय पश्चात गुरुदेव ने सभी बच्चों को आश्रम के परिसर में बुलाया और बोले मैं कुछ समय के लिए पास के ही गांव में जा रहा हूं और शीघ्र ही लौट आऊंगा। यह कहकर गुरुदेव आश्रम से चले गए अगले दिन तरुण जंगल में लकड़ियां इकट्ठा करने के लिए गया वह लकड़ियां इकट्ठा कर ही रहा था कि उसने देखा एक सुंदर स्त्री उसके सामने खड़ी थी उसने उससे पूछा देवी आप कौन

है और इस सुनसान जंगल में आप क्या कर रही हैं। उस सुंदर स्त्री ने उत्तर दिया मैं पास के ही गांव में जा रही थी परंतु अब होने रात को है और मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं कहां जाऊं इतना सुनकर तरुण ने कहा देवी आप चाहे तो आज रात आप हमारे आश्रम में विश्राम कर सकती हैं। उस स्त्री को असहज होता देख तरुण ने कहा देवी मैं पूर्ण ब्रह्मचारी हूं। आपको मुझसे किसी प्रकार की कोई डरने की आवश्यकता नहीं इतना सुनकर उस स्त्री ने भी हां में सर हिलाया और तरुण के साथ चल दी। आश्रम पहुंचकर तरुण ने कहा देवी आप कुटी के अंदर सो जाइए मैं बाहर सो जाता हूं अब वह सुंदर स्त्री कुटी के अंदर

और तरुण कुटी के बाहर सो गया आधी रात होते-होते सर्दी बढ़ने लगी तरुण ने कुटी का दरवाजा खटखटाया और बोला देवी बाहर बहुत सर्दी है। मैं कुटी के अंदर जमीन पर सो जाता हूं क्योंकि अब मैं बाहर बहुत ज्यादा देर तक ठंड में नहीं रह सकता। यह कहकर वह कुटी के अंदर जाकर सो गया अब स्त्री के सांसों की आवाज उसे स्पष्ट सुनाई दे रही थी धीरे-धीरे उसे कामवासना सताने लगी वह उठा और जैसे ही उसने स्त्री को स्पर्श करने की कोशिश की तो स्त्री ने अपना रूप बदला और वह महर्षि वेदव्यास के रूप में आ गए। वास्तव में महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्य की परीक्षा लेने के लिए एक सुंदर

नारी का रूप धारण किया था। यह सब देखकर शिष्य अपने आप पर गलानी महसूस करने लगा और बार-बार अपने गुरुदेव से क्षमा याचना करने लगा तो गुरुदेव ने कहा मेरे प्यारे शिष्य कामवासना इतनी होती है कि उसके जाल में स्वयं महर्षि विश्वामित्र तक फंस गए तो तुम तो एक साधारण से बालक हो दोस्तों इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा काम वासना को अपने वश में रखना चाहिए क्योंकि कामुकता इंसान की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है। आशा करता हूं मेरा यह ब्लॉग आपको बहुत पसंद आया होगा।

FAQ

ब्रह्मचर्य का नियम क्या है?

ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है, " ब्रह्म की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला आचरण"! ब्रह्मचर्य का पहला नियम है, काम वासना को नियंत्रित रखना! इस कारण गृह, खास कर नारी समाज से तब तक दूर रहना जब तक कि योग सिद्ध न हो जाए। कामवासना को नियंत्रित करने के लिए  कम व सादा भोजन तथा कम सोना आवश्यक है।

ब्रह्मचर्य की शक्ति क्या है?

ब्रह्मचर्य मनुष्य की एकाग्रता और ग्रहण करने की क्षमता बढाता है। ब्रह्मचर्य पालन करने वाला व्यक्ति किसी भी कार्य को पूरा कर सकता है। ब्रह्मचारी मनुष्य हर परिस्थिति में भी स्थिर रहकर उसका सामना कर सकता है। ब्रम्हचर्य के पालन से शारीरिक क्षमता , मानसिक बल , बौद्धिक क्षमता और दृढ़ता बढ़ती है।

ब्रह्मचारी की उम्र कितनी होती है?

इसमें पहला आश्रम है ब्रह्मचर्य आश्रम, जिसे आमतौर पर जीवन के पहले 25 साल तक माना गया है। 25 वर्ष की आयु तक हर व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का प्रथम अर्थ संभोग की शक्ति का संचय करना।

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