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दिव्यांग राजा

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  यह कहानी एक दिव्यांग राजा की है। उसकी एक आंख नहीं थी और एक पैर भी नहीं था लेकिन फिर भी उसके राज्य में कोई भी परेशानी नहीं थी। सभी लोग उसे राजा से बहुत खुश द और वह भगवान का शुक्रिया अदा करते रहते थे  की इतने अच्छे राजा उनकी जिंदगी में आए राजा को अपनी एक आंख और एक तंग ना होने का कोई भी दुख नहीं था वह हमेशा खुशी रहता था। अभी एक दिन वह राजा अपने महल के मुख्य कमरे में घूम रहा था। वह अपने पूर्वजों की लगी तस्वीरें को देख रहा था और सोच रहा था की मेरे पिताजी कितने बड़े शूरवीर थे। और मेरे दादाजी भी बहुत बड़े शूरवीर द और मुझे भी इतने बड़े शूरवीर खानदान में जन्म लेने का मौका मिला इसके लिए वो राजा ऊपर वाले का दिल से धन्यवाद कर रहा था तभी राजा तभी चित्रों को देखते हुए आखिरी तस्वीर तक पहुंचा और फिर उसने खाली जगह को देखा तो वह बड़ी चिंता में पद गया क्योंकि उसे मालूम था की अब यहां जो तस्वीर लगेगी वह उसी की ही लगेगी लेकिन उसे राजा को इस बात की कोई भी चिंता नहीं थी की वह एक दिन मार जाएगा उसे चिंता तो इस की थी की वहां जो पेंटिंग लगेगी वह दिखने में कैसी होगी राजा की एक आंख और एक पैर एन होने की वजह से वह