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ब्रह्मचर्य की कहानी

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   ब्रह्मचर्य की कहानी एक बार महर्षि वेदव्यास अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे रहे थे उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि कामुकता इंसान के विनाश का सबसे बड़ा कारण है। इसलिए हमें ब्रह्मचर्य जीवन में कामवासना से बचना चाहिए। गुरुदेव की बात बीच में ही काटते हुए उनके तरुण नामक एक शिष्य ने कहा गुरुदेव मैं तो पूर्ण ब्रह्मचारी हूं काम मुझे जरा सा भी पीड़ित नहीं कर सकता तो गुरुदेव ने कहा वत्स यदि तुम्हारा मन जरा सा भी कमजोर हुआ तो कामवासना तुम्हारे ऊपर हावी हो सकता है परंतु शिष्य मानने को तैयार नहीं था वह बार-बार यही कहता कि गुरुदेव मैं तो पूर्ण ब्रह्मचारी हूं। कामवासना की कितनी भी तेज आधी क्यों ना हो मगर वह मेरे ब्रह्मचर्य को हिला नहीं सकती। गुरुदेव ने उसकी बातों से भी सहमति व्यक्त की और मन ही मन उसकी परीक्षा लेने के बारे में सोचने लगे कुछ समय पश्चात गुरुदेव ने सभी बच्चों को आश्रम के परिसर में बुलाया और बोले मैं कुछ समय के लिए पास के ही गांव में जा रहा हूं और शीघ्र ही लौट आऊंगा। यह कहकर गुरुदेव आश्रम से चले गए अगले दिन तरुण जंगल में लकड़ियां इकट्ठा करने के लिए गया वह लकड़ियां इकट्ठा कर ही